BAGLAMUKHI SHABHAR MANTRA - AN OVERVIEW

baglamukhi shabhar mantra - An Overview

baglamukhi shabhar mantra - An Overview

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द्वि-भुजी बगला ( पीताम्बरा ध्यान मंत्र ) मध्ये सुधाऽब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्याम्, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।

बिम्बोष्ठीं कम्बु-कण्ठीं च, सम-पीन-पयोधरां। पीताम्बरां मदाघूर्णां , ध्याये ब्रह्मास्त्र-देवतां ।।

श्री – सिंहासन – मौलि-पातित-रिपुं प्रेतासनाध्यासिनीम् ।।

ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा॥

ऊँ ह्लीं बगलामुखीं ! जगद्वशंकरी! मां बगले! पीताम्बरे! प्रसीद प्रसीद मम सर्व मनोरथान् पूरय पूरय ह्लीं ऊँ

Shabar mantras certainly are a form of recitation present in the Indian mystical tradition of tantra. These mantras are believed being highly effective and successful in attaining distinct uses when chanted with devotion and sincerity. Here are some of different and critical forms of Shabar mantras:

  चतुर्भुजां त्रि-नयनां, पीत-वस्त्र-धरां शिवाम् ।

पर – प्रज्ञापहारीं तां, पर – गर्व – प्रभेदिनीम् ।

To perform Baglamukhi Shabar Mantra Sadhana, just one demands to arrange on their own mentally and physically. The practitioner have to follow a certain technique that involves the chanting of mantras and performing different rituals.

वास्तव में शाबर-मंत्र अंचलीय-भाषाओं से सम्बद्ध होते हैं, जिनका उद्गम सिद्ध get more info उपासकों से होता है। इन सिद्धों की साधना का प्रभाव ही उनके द्वारा कहे गए शब्दों में शक्ति जाग्रत कर देता है। इन मन्त्रों में न भाषा की शुद्धता होती है और न ही संस्कृत जैसी क्लिष्टता। बल्कि ये तो एक साधक के हृदय की भावना होती है जो उसकी अपनी अंचलीय ग्रामीण भाषा में सहज ही प्रस्फुटित होती है। इसलिए इन मन्त्रों की भाषा-शैली पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। यदि आवश्यकता है तो वह है इनका प्रभाव महसूस करने की।

Goddess Bagla, generally known as Valghamukhi, is honoured Along with the Baglamukhi mantra. "Bagala" refers to a wire that's positioned while in the mouth to restrain tongue actions, whilst mukhi refers to the encounter.

अर्थात् सुवर्ण के आसन पर स्थित, तीन नेत्रोंवाली, पीताम्बर से उल्लसित, सुवर्ण की भाँति कान्ति- मय अङ्गोवाली, जिनके मणि-मय मुकुट में चन्द्र चमक रहा है, कण्ठ में सुन्दर चम्पा पुष्प की माला शोभित है, जो अपने चार हाथों में- १.

निधाय पादं हृदि वाम-पाणिनां, जिह्वां समुत्पाटन-कोप-संयुताम् ।

कौलागमैक-संवेद्यां, सदा कौल-प्रियाम्बिकाम् ।

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